मणिपुर -2

सोचा था अब मणिपुर पर कुछ नहीं लिखूंगा. लेकिन एक सहपाठी ने एक वीडियो भेजा जिसमे दो प्रोफ़ेसर साहब (दोनों इतिहास वाले) बातें कर रहे थे. दोनों कूकियों को आदिवासी कह रहे थे. इसलिए लिखना जरूरी समझा. 

बोलचाल में हम लोग ट्राइबल्स को आदिवासी कहते हैं. सामान्यतः यह काफी जगह सही भी रहता है. कूकी (या नागा या कछारी ...) शेडयूल्ड ट्राइब्स में गिने जाते हैं, जिसका पारिभाषिक हिंदी पर्याय है अनुसूचित जनजाति. जनजाति ही सही शब्द है. कूकी उस क्षेत्र के 'आदिवासी' नहीं हैं.     

कूकी, कई कबीलों में बँटा, एक घुमन्तु नस्ल रहा था. यद्यपि उस नस्ल के कुछ लोग लम्बे अरसे से मणिपुर राज्य की प्रजा रहे लेकिन मणिपुर में गिनने लायक संख्या में कूकी पहली बार 1830 और 1840 के बीच आये थे. वे दक्षिण से यानी म्यांमार से आये थे; जहाँ से कुछ दूसरे कबीलों ने शायद उन्हें खदेड़ दिया था. 1845 तक उनकी संख्या मणिपुर के राजा को चिंतित करने लगी थी पर अंतःकलह के चलते मणिपुर का तत्कालीन राजा नूर सिंह कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं था.   

लेफ्टिनेंट मक्कालक ने, जो उन दिनों मणिपुर में ईस्ट इंडिया कंपनी का पोलिटिकल एजेंट था, राजा की सहमति से कूकी लोगों को मणिपुर में जगह जगह बसाना शुरू किया. उसने मणिपुर की सीमा के क्षेत्र चुने थे - जैसे म्यांमार की सीमा पर स्थित वर्तमान चूड़चंदपुर क्षेत्र, जो आज भी एक कूकी बहुल जिला है. कुछ कूकी जवानों को मक्कालक ने मणिपुर की फ़ौज में भी जगह दिलायी और इस तरह दुर्धर्ष कूकी मणिपुर राज्य की शांतिप्रिय प्रजा में बदले जा सके थे.

हिंसा का वर्तमान दौर 3 मई से शुरु हुआ किन्तु इसके लक्षण और कारण बहुत पहले से दिख रहे थे. उच्च न्यायालय का आदेश बस proximate cause है, real cause नहीं. मणिपुर बसे कूकी कबीलों की स्थिति समझने के लिए नागा लोगों का इतिहास जानना उपयोगी होगा. नागा कबीले भी बाहर से आये हैं, पर कूकियों के बहुत पहले. असम घाटी में उन्हें नागा कहा गया, जो 'नंगा' से बना है क्योंकि वे बस कमर पर एक छोटा कपडा लपेटे रखते थे. पौराणिक 'नाग' योनि से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है न ही उनमें सर्प पूजा की कोई परम्परा कभी रही. 

नागा लोगों की परम्पराएं कुछ अधिक हिंसात्मक थीं. किसी नागा युवक की शादी तब तक नहीं हो सकती थी, क्योंकि कोई नागा युवती तब तक उसके साथ रहने की नहीं सोच सकती थी, जब तक वह किसी मनुष्य का सर काट कर बतौर एक जयचिह्न (ट्रॉफी) न लाए. नागाओं के भी, जैसे कूकियों के, अनेक कबीले हैं. उन कबीलों में परस्पर मेल नहीं रहता था.    

प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों ने मणिपुर के राजा से भारवाहक (कुली) मांगे थे. करीब दो हजार नागा भारतीय सेना के साथ बतौर भारवाहक यूरोप गए, एक भी कूकी नहीं गया था. प्रथम युद्ध के दौरान, पहली बार विभिन्न कबीलों के नागा एक साथ रहे. सिर्फ रहे ही नहीं, उन्होंने यूरोप के शहरों को भी साथ-साथ देखा. उसके पहले वे बस सिर काटने के लिए एक दूसरे को खोजते थे. युद्ध के बाद वापस लौटने पर, 1920 में उन लोगों ने कोहिमा में एक "नागा क्लब" बनाया. और यहीं से नागा राष्ट्रीयता का भाव पनपा - अमेरिकन बैप्टिस्ट मिशनरियों का भी आशीर्वाद था, जो उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से नागा हिल्स में सक्रिय रहे थे.

नागा क्लब ही 1946 तक नागा नैशनल कौंसिल बना और देश की आज़ादी के समय कौंसिल ने अंग्रेजों से स्वतन्त्रता की मांग की थी. 1947 के बाद नागा स्वतन्त्र देश चाहते थे. सशस्त्र विद्रोह की घटनाएं होती रहीं. भारत सरकार और नागा विद्रोही दलों के बीच दशकों वार्ता चली. अंत मे नागा राष्ट्र की जगह नागा राज्य बनने से सभी संतुष्ट हुए. आम चुनावों में नागालैंड में जैसी भागीदारी देखी जा रही है उससे यही लगता है कि नागा राष्ट्रीयता अब भारतीय राष्ट्रीयता से एकात्म हो गयी है. 

कूकी भी अपने लिए अलग देश, राज्य या क्षेत्र की मांग कर रहे हैं. बीस से अधिक कूकी उग्रवादी संगठन खड़े हुए थे. 2005-08 में मणिपुर सरकार और उग्रवादी समूहों के बीच एसओओ (सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स) संधियाँ हुईं. लेकिन एक दो कूकी उग्रवादी संगठन उनमें शामिल नहीं हुए थे. एसओओ में नहीं शामिल होने वालों में एक समूह है कुकी नैशनल फ्रंट का नेहलुन गुट; आगे केएनएफ-एन. केएनएफ-एन के लोगों ने ही मई में हथियार लूटे थे. (लेकिन यहाँ कुछ विरोधाभास मिलता है. जून में एक जगह पढ़ने को मिला था कि आसाम राइफल्स के प्रवक्ता ने कहा था कि एसओओ शिविरों में जमा कूकियों के शास्त्र सुरक्षित हैं!)   

केएनएफ-एन की शह पर 2021 में कुछ कूकियों ने कॉब्रो पर्वत को अपनी पैतृक भूमि घोषित करते हुए मणिपुर सरकार को पर्वत पर सर्वेक्षण काम बंद करने को कहा था. कॉब्रो पर्वत मणिपुर का सबसे ऊँचा पर्वत है जिसे मेइती बहुत पवित्र मानते हैं. अधिकांश मेइती बस अठारहवीं सदी से हिन्दू हैं. उसके पहले वे एक जीववादी धर्म सनमाही के अनुगामी थे. कॉब्रो पर्वत पर सनमाही धर्म के एक प्रमुख देवता लैनिंगथ्रौ कॉब्रो और उनकी सहचरी कौनु का वास माना जाता है. आज भी, तीन सौ साल से हिन्दू होने के बाद भी, प्रायः सभी मेइती सनमाही देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते रहते हैं. कॉब्रो पर्वत को अपनी पैतृक भूमि बता कर कुकियों ने मेइती आस्था पर प्रहार किया.

लेकिन प्रहार के कारण शायद व्यावसायिक हैं. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से चीन, स्यामदेश, लाओस और म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्र गोल्डन ट्रैंगल के नाम से अफीम की खेती के लिए जाने जाने लगे थे. दक्षिण-पूर्व एशिया में होते अफीम के कुल उत्पादन का, कहा जाता है, अस्सी प्रतिशत म्यांमार में होता है. अफीम के व्यापार से बहुत अधिक लाभ उससे निकले हेरोइन के व्यापार में होता है. अफीम से हेरोइन बनाने के लिए एसिटिक एनहाइड्राइड की जरूरत होती है जो भारत में आसानी से उपलब्ध है. भारत-म्यांमार सीमा पर म्यांमार में बड़े स्तर पर हेरोइन बनता है जिसके लिए एसिटिक एनहाइड्राइड भारत से जाता है. 

और यह कारोबार मणिपुर के सीमावर्ती जिले चूड़चंदपुर के मार्फत हो रहा है. म्यांमार भारत से एसिटिक एनहाइड्राइड लेता है और भारत को हेरोइन देता है. एक आकलन के अनुसार उत्तर-पूर्व के रास्तों से प्रति दिन बीस किलो हेरोइन की तस्करी होती है. इसका सीधा नतीजा था कि मणिपुर में हेरोइन अभ्यस्त लोगों की संख्या सबसे अधिक थी. कभी मणिपुर जैसा छोटे राज्य एड्स से ग्रस्त लोगों की संख्या में भारत में दूसरे नंबर पर था. पचहत्तर प्रतिशत एड्स के रोगी हेरोइन की सूई से संक्रमित हो रहे थे.        

अफीम और हेरोइन का कारोबार म्यांमार से छलक कर मणिपुर के सीमावर्ती जिले चूड़चंदपुर में आ चुका है. यह जिला कूकी बहुल है. पहाड़ो में कहा जा रहा है कूकी हजारो एकड़ जमीन में अफीम की खेती कर रहे हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि कॉब्रो पर्वत पर सर्वेक्षण का काम रोकने का असली उद्देश्य अफीम के खेतों को बचाना हो. मणिपुर से हेरोइन की तस्करी में सुरक्षाबल के अधिकारी और मणिपुर के राजनेता भी संलग्न हैं. मणिपुर विधान सभा मे, बहुत पहले आउटलुक में पढ़ा था, ऐसे सदस्य भी हैं जो तिहाड़ में तस्करी के अभियोग में समय काट चुके हैं!

हेरोइन के जाल से मणिपुर को बाहर ला पाने के लिए शायद राजनैतिक संकल्प की कमी है. कूकी भी यह जानते हैं. और यदि वह संकल्प हो भी जाए, वैसी राजनैतिक इच्छा प्रकट हो जाए, उसके बाद भी कूकी समस्या का सर्वमान्य हल खोजने में दशकों लगेंगे जैसे नागा लोगों के साथ लगा. 

इस बीच वामपंथी प्रकाशनों में देखने को मिल रहा है कि कूकी मणिपुर में 33 ईस्वी में भी मौजूद थे 😢. 

पुनश्च: चीन या पाकिस्तान या म्यांमार का हस्तक्षेप मूल कारण नहीं है. जब पानी उबलता है तो जिसे मौका मिलेगा वह अपने लिए चाय बनाएगा.

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